विश्व साहित्य के सर्वप्राचीन साहित्य 'वेद' हैं जो कि अनादी और अपौरुषय हैं। वेद साक्षात् कृतधर्मा ईश्वर के आत्म विश्वास स्वरूप हैं। 'यस्य निःितितं वेदाः'। ईश्वर प्रदत्त ज्ञान का प्रतिपादन करने वाले वेद ही हैं। 'विद' ज्ञाने धातु से वेद की रचना है। वेदों में आध्यात्मिक आधिदैविक आधिभौत के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान का समावेश है। वेद समस्त ज्ञान रत्नराशी के मूल सागर हैं। ये ब्रह्मनिष्ठ ऋषि और मुनियों के साथ-साथ अनुभव प्राप्त कर रहे हैं। धर्मार्थ मोक्ष इन चारों प्राथर्थों का प्रतिपादन वेद ही करते हैं और ये वेद स्वयं अङगों के द्वारा स्वरूपित होते हैं। अतः वेद ज्ञान के लिए वेद के अंगों अर्थात् वेदाङ्गों का ज्ञान आवश्यक है। "अङ्ग्यन्ते ज्ञययन्ते अमीभिरिति अङगगानि" इस व्युत्पत्ति के अनुसार किसी तत्त्व ज्ञान को समझने के लिए जिन उपकरणों की आवश्यकता होती है वे अङ्ग कहे जाते हैं।