नवीनीकरण R/AL/04856/22-23,
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भारत सरकार के नीति आयोग द्वारा पंजीकृत संस्थान

श्री वेदाङ्ग संस्थान

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नवीनतम समाचार और सूचना

1. (09-10-2025) सत्र 2025-2026 के आनलाइन प्रवेश की प्रक्रिया प्रारम्भ है, आप सभी अपने रुचि के अनुसार एकवर्षीय कर्मकाण्ड डिप्लोमा अथवा ज्योतिष डिप्लोमा अथवा संस्कृत भाषा में प्रवेश ले सकते हैं।    ||    2. (04-07-2025) सत्र 2025-26 के आनलाइन प्रवेश की प्रक्रिया प्रारम्भ है, आप सभी अपने रुचि के अनुसार प्रवेश ले सकते हैं, जैसे - एकवर्षीय कर्मकाण्ड डिप्लोमा, एकवर्षीय ज्योतिष डिप्लोमा एवं संस्कृतभाषा डिप्लोमा। रजिस्ट्रेशन के बाद 9415366822 पर सूचना दें तथा शुल्क भुगतान कर प्रवेश सुनिश्चित करें।   ||    3. (24-05-2025) सत्र 2024-25 के पंजीकृत सभी छात्रों का परिणाम आ गया है, वे अपना इनरोलमेंट नं. एवं जन्मतिथि डालकर देख सकते हैं अथवा 9415366822 पर सम्पर्क करके पीडीएफ प्राप्त कर सकते हैं।   ||    4. (05-12-2024) शोध लेख आमंत्रण वेदांग वीथी के अग्रिम अंक हेतु शोध लेख आमंत्रित हैं, संस्कृत या हिंदी भाषा में सनातन धर्म से संबंधित वेद, पुराण ,शास्त्र से संबंधित लोकोपकारक विषयों से संबंधित लेख न्यूनतम 5पेज लिखकर टाइप कराकर मूल फाईल shrivedangsansthan@gmail.com मेल पर 30दिसंबर तक प्रेषित कर सकते हैं, लेख का शुल्क मात्र 1500रु । 9415366822नं पर पेटीएम या फोन पे द्वारा जमा करके इसी ग्रुप में या उक्त नं ह्वाट्सएप पर प्रेषित करें। इससे संबंधित किसी प्रकार की जानकारी के लिए उक्त नं पर ह्वाट्स ऐप पर ही संपर्क करें। धन्यवाद प्रकाशक वेदांग वीथी अर्धवार्षिक शोध पत्रिका श्री वेदांग संस्थान प्रयागराज।   ||   
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हमारे बारे में

विश्व साहित्य के सर्वप्राचीन साहित्य 'वेद' हैं जो कि अनादी और अपौरुषय हैं। वेद साक्षात् कृतधर्मा ईश्वर के आत्म विश्वास स्वरूप हैं। 'यस्य निःितितं वेदाः'। ईश्वर प्रदत्त ज्ञान का प्रतिपादन करने वाले वेद ही हैं। 'विद' ज्ञाने धातु से वेद की रचना है। वेदों में आध्यात्मिक आधिदैविक आधिभौत के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान का समावेश है। वेद समस्त ज्ञान रत्नराशी के मूल सागर हैं। ये ब्रह्मनिष्ठ ऋषि और मुनियों के साथ-साथ अनुभव प्राप्त कर रहे हैं। धर्मार्थ मोक्ष इन चारों प्राथर्थों का प्रतिपादन वेद ही करते हैं और ये वेद स्वयं अङगों के द्वारा स्वरूपित होते हैं। अतः वेद ज्ञान के लिए वेद के अंगों अर्थात् वेदाङ्गों का ज्ञान आवश्यक है। "अङ्ग्यन्ते ज्ञययन्ते अमीभिरिति अङगगानि" इस व्युत्पत्ति के अनुसार किसी तत्त्व ज्ञान को समझने के लिए जिन उपकरणों की आवश्यकता होती है वे अङ्ग कहे जाते हैं।

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